क्या लिखूं

कुछ समझ नहीं आता क्या लिखूं
तुझे अपना लिखू या कोई सपना लिखूँ
बिखरे थे जो चेहरे पे वो भाव मेरे लिए
उसे अपने लिए लिखूँ या तेरी आदत।
लिया था हाथो में मेरा चेहरा कभी
उस लमहोंको अपना कहूँ या सपना कहूँ
वो उड़ान जो कभी भरी थी तेरे
आसमां और चाँद को छू लिया था उसको अपना कहू
या सपना कहूँ
वो वादे जो ना मैंने किये न तुमने
किये
उन वादों के पन्नो में जो बिखरी है यादें
उनको बसा लिया है जिसने
उस दिल को क्या लिखूं
कुछ समझ नहीं आता क्या लिखूँ
तुझे अपना लिखूँ या सपना लिखूँ

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writersonu

I am just an open book. Just look into my eyes and you will get to know everything about me.

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