किस्सा रफ़ कॉपी का..

हर सब्जेक्ट की कॉपी अलग अलग बनती थी, परंतु एक कॉपी ऐसी थी जो हर सब्जेक्ट संभालती थी, उसे हम रफ़ कॉपी कहते थे, यूं तो रफ़ मतलब खुरदुरा होता है, परंतु वो रफ़ कॉपी हमारे लिए बहुत कोमल थी! कोमल इस सन्दर्भ में कि उसके पहले पेज पर हमें कोई इंडेक्स नहीं बनाना होता था, न ही शपथ लेनी होती थी की इस कॉपी का एक भी पेज नहीं फाड़ेंगे, इसे साफ़ साफ़ रखेंगे! वो कॉपी पर हमारे किसी न किसी पसंदीदा व्यक्तित्व का चित्र होता था,

वो कॉपी के पहले पन्ने पर सिर्फ हमारा नाम होता था, और आखिरी पन्नों पर अजीब सी कलाकृतियां, राजा-मंत्री-चोर-सिपाही या फिर पर्ची वाले क्रिकेट का स्कोरकार्ड..उस रफ़ कॉपी में बहुत सी यादें होती थीं, जैसे अनकहा प्रेम, अनजाना सा गुस्सा, कुछ उदासी, कुछ दर्द, हमारी रफ़ कॉपी में ये सब कोड वर्ड में लिखा होताथा, जिसे डिकोड नहीं किया जा सके! उस पर अंकित कुछ शब्द, कुछ नाम, कुछ चीज़े ऐसी थीं जिन्हें मिटाया जाना हमारे लिए असंभव था, हमारे बैग में कुछ हो या न हो वो रफ़ कॉपी जरूर होती थी! आप हमारे बैग से कुछ भी ले सकते थे लेकिन रफ़ कॉपी नहीं! हर पेज पर हमने बहुत कुछ ऐसा लिखा होता था जिसे हम किसी को भी नहीं पढ़ा सकते थे, कभी कभी ये भी हुआ की उन पन्नों से हमने वो चीज़ फाड़ के दांतों तले चबा के थूक दी थीं, क्योंकि हमें वो चीज़ पसंद न आई होगी!!

समय इतना बीत गया की अब कॉपी हीं नहीं रखते हैं, रफ़ कॉपी जीवन से बहुत दूर चली गयी है, ! हालाँकि अब बैग भी नहीं रखते की रफ़ कॉपी रखी जाएँ, वो खुरदुरे पन्नों वाली रफ़ कॉपी अब मिलती ही नहीं, हिसाब भी नहीं हुआ है बहुत दिनों से, न ही प्रेम का, नही गुस्से का! यादों की भाग गुणा का समय नहीं बचता!अगर कभी वो रफ़ कॉपी मिलेगी तो उसे लेकर बैठेंगे, फिर से पुरानी चीज़ें खँगालेंगे, हिसाब करेंगे, और आखिरी के पन्नों पर राजा-मंत्री-चोर-सिपाही खेलेंगे!

वो नटराज की पेन्सिल, वो चेलपार्क की स्याही..

वो महँगी पाइलेट पैन और जैल पैन की लिखाई…

वो सारी ड्रॉयिंग्स वो पहाड़, वो नदी, वो झरने वो फूल..

लिखते लिखते ना जाने कब ख़त्म हुआ स्कूल…

अब तो बस साइन करने के लिए उठती है कलम..

टाइप करके घिस रहे उंगलियाँ, जाने कब लगेगा मल्हम…

पर आज ना जाने क्यूँ नोटबुक का वो लास्ट पेज याद आ गया..

जैसे उस काट पीट में छिपा कोई राज़ हो टकरा गया…

जीवन में शायद कहीं हो कुछ कम सा गया है..

पलकें भीगी सी हैं कुछ नम सा गया है..

आज फिर वक़्त शायद कुछ थम सा गया है ।।

क्या आप को याद है आप की वो रफ कॉपी ?

Published by

writersonu

I am just an open book. Just look into my eyes and you will get to know everything about me.

Leave a comment