कुछ भी लिखने का मन नहीं….
ज़रूरी है कि रोज़ लिखूं और रोज़ पोस्ट करूँ….
मेरे एहसासों को भी आराम चाहिए…
हर रोज़ कलम के विमान पर हो सवार
दुनिया की सैर को निकल जाते हैं बेचारे…
ज़र्रे ज़र्रे से जज़्बात ढूंढ कर लाते हैं….
और अल्फ़ाज़ों के मसालों से
बना कविता ..परोसे जाते हैं पोस्ट की थाली में…
कितना थक जाते हैं मेरे ये कोमल से एहसास…
उन्हीं एहसासों को हर रोज़ नई नई रचना का लिबास पहना…
फैशन परेड करनी पड़ती है….
कभी अल्फ़ाज़ बदलते हैं …तो कभी लेखन शैली…
क्या सोचा कभी किसी ने….
एहसासों को कितना बुरा लगता होगा….
हर रोज़ हम उसके दर्द को
अपनी मनमर्ज़ी से बयां कर डालते हैं….
आह उसकी होती है…वाह दुनिया करती है
आज मेरे एहसासों ने हड़ताल कर दी है..
राज़ी नहीं हो रहे बयां करने को ख़ुदको…
तो सोचा आज कुछ नहीं लिखता
चुप ही रहता हूँ….
कहीं नाराज़ हो गए तो फिर….
तो भई आज मैं तो चुप हूँ एकदम….
बोलूंगा नहीं…..
उनको आराम करने देता हूँ…
ठीक है ना,..
शोर मत करना ओके…..