दिख गया चेहरा तेरा फिर बादलों के घेरे में |
रौशनी चमकी, हुई गुम, फिर से इन्हीं अंधेरों में ||
घिर रही यादों की घटा मन की पहाड़ी घाटियों में,
और रह-रह कर हैं आंसू छलके पड़ते चेहरे पर,
यादों की है रील फिरती मन के पटल पर बार-बार,
तुम-ही-तुम बस याद आते, ओ मेरे पहले प्यार |
इक डोर से खिंचता चला आया था मैं पास तेरे,
क्लांत तुम लेती थी और बैठा था मैं साथ तेरे;
हाथ तुमने बढाकर मेरी ओर, फिर खींचा था वापस,
मैं अभागा, कायरमन , छू पाता जो काश हाथ तेरे हाथ।
बादलों को देखते ही घिरती है यादों की घटा,
झील की पगडंडियों के आस-पास वो घूमना,
विवश-सी तुमने था टेका मत्था भाग्य के सामने,
मैंने चाहा था घेरना, पर तुमने था किया मना |
दिख गया चेहरा तेरा फिर बादलों के घेरे में |
रौशनी चमकी, हुई गुम, फिर से इन्हीं अंधेरों में ||
एक महीने रहा घूमता नैनी-भुवाली बार-बार,
विदा लेनी तय थी लेकिन मन ना होता था तैयार;
सिसकियाँ सुनते हुए पग मुड़ें ना, चलते रहे,
नियति के हाथों गया था प्यार मेरा हाय हार !
दिख गया चेहरा तेरा फिर बादलों के घेरे में |
रौशनी चमकी, हुई गुम, फिर से इन्हीं अंधेरों में |
यहाँ तन्हाई में अपनी जब मन बहुत बैचैन होता,
याद आ जाता वो मन्नो का विवश, घुट-घुट के रोना,
अपनी कायरता को रोता, उसकी लाचारी को रोता,
देखता बादल में उसको, जागी आँखों से मैं सोता |
बादलों के इन्हीं घेरों में मैं इक दिन जा समाऊंगा |
मन्नो को शायद कहीं इन बादलों में ही पाउँगा ||