बादलों के घेरे में 

दिख गया चेहरा तेरा फिर बादलों के घेरे में | 

रौशनी चमकी, हुई गुम, फिर से इन्हीं अंधेरों में ||

घिर रही यादों की घटा मन की पहाड़ी घाटियों में,

और रह-रह कर हैं आंसू छलके पड़ते चेहरे पर, 

यादों की है रील फिरती मन के पटल पर बार-बार,

तुम-ही-तुम बस याद आते, ओ मेरे पहले प्यार |

इक डोर से खिंचता चला आया था मैं पास तेरे,

क्लांत तुम लेती थी और बैठा था मैं साथ तेरे;

हाथ तुमने बढाकर मेरी ओर, फिर खींचा था वापस,

मैं अभागा, कायरमन , छू पाता जो काश हाथ तेरे हाथ।

बादलों को देखते ही घिरती है यादों की घटा,

झील की पगडंडियों के आस-पास वो घूमना,

विवश-सी तुमने था टेका मत्था भाग्य के सामने,

मैंने चाहा था घेरना, पर तुमने था किया मना |

दिख गया चेहरा तेरा फिर बादलों के घेरे में | 
रौशनी चमकी, हुई गुम, फिर से इन्हीं अंधेरों में ||

एक महीने रहा घूमता नैनी-भुवाली बार-बार,
विदा लेनी तय थी लेकिन मन ना होता था तैयार;

सिसकियाँ सुनते हुए पग मुड़ें ना, चलते रहे,

नियति के हाथों गया था प्यार मेरा हाय हार !

दिख गया चेहरा तेरा फिर बादलों के घेरे में | 
रौशनी चमकी, हुई गुम, फिर से इन्हीं अंधेरों में |

यहाँ तन्हाई में अपनी जब मन बहुत बैचैन होता,

याद आ जाता वो मन्नो का विवश, घुट-घुट के रोना,

अपनी कायरता को रोता, उसकी लाचारी को रोता,

देखता बादल में उसको, जागी आँखों से मैं सोता |

बादलों के इन्हीं घेरों में मैं इक दिन जा समाऊंगा |
मन्नो को शायद कहीं इन बादलों में ही पाउँगा || 

चाँद की चाँदनी 

चाँद की बात हो और उसकी चाँदनी की बात ना हो ऐसा कभी हो सकता है ! नहीं जी नहीं..हरगिज नहीं

जरा सोचिए तो …

जब सूर्य देव अपना रौद्र रूप धारण कर लेते हैं ….

और अपनी किरणों के वार से हम सभी को झुलसा डालते हैं ….

तो शाम के साथ आई ये चाँदनी ही तो हमें अपनी मित्र सी दिखती है

जिसकी विशाल नर्म बाहों में सिर रखकर किसी अपने की याद बरबस ही आ जाती है। 

मातृप्रेम 

पूरे विश्व में औरत को शक्ति का रूप माना गया है। धर्मशास्त्रों में भी स्त्री को जो सर्वोच्च सम्मान दिया गया है, वह माँ का है। इसीलिए जिसने भी पुरुषों को जन्म देने वाली माँ को गलत निगाह से देखा है, वह हमेशा पतन की तरफ गया है। यही कारण है कि माँ बनना औरत का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है और मातृत्व से महिलाओं की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। परन्तु भारतीय समाज में एक महिला को तब तक अधूरा समझा जाता है, जब तक की वह मातृत्व का सुख प्राप्त नहीं कर लेती। इसीलिए हर परिवार चाहता है कि विवाह के बाद जल्दी से जल्दी बहू माँ बन जाए। क्योंकि प्रकृति कहती है कि हर माँ अपने परिवार को वारिस सौंपे, ताकि आने वाले समय में उनकी पीढ़ियाँ बढ़ती जायें। 

हिन्दू धर्म में भी मातृ-वंदना का गुणगान किया गया है तथा हर नारी को आदर और सम्मान से माँ पुकारना इस संस्कृति की पहचान बन गया है। सिर्फ एक माँ ही होती है, जो अपने बच्चों की गलतियों को माफ करती है और उसे गलत रास्ते पर जाने से रोकती है। लेकिन माँ को यह क्षमाशीलता का गुण प्रकृति ने दिया है। इसलिए हम कह सकते हैं कि माँ त्याग, क्षमा और निःस्वार्थ सेवा की देवी होती है फिर माँ और बच्चे का रिश्ता एक अटूट बंधन में बंध जाता है, जो दिन-प्रतिदिन मजबूत होता जाता है। 

‘मातृदेवो भव’ इस धरती पर सबसे बड़ी देवी है। गर्भ के धारण करने के बाद से लेकर सामर्थ होने तक माँ बच्चे के लिए जो कुछ करती है, उसको शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता।

मजदूरी या मजबूरी 

Suna tha… Chandani ki sheetalta ka anand wahi utha sakta hai jo din bhar suraj ki tapish me apna sara sharir jhulsakar, suraj  ke chipne ke intezar me apni ankhe pasare rehte hain, unke pariwar ke log kisi ghosle me chidiya ke bacho ki tarah raah takte hain taki Majdoori milne par unke gharon me chulhe jal sake. Par kudrat ki widambana dekhiye, ki majdoor ko unke mehnat ki kamai to door unke pasine ki keemat bhi ada karne me ajj ke Sethi samaj chuk jate hain. Ab is trasda ko apni taqdeer, apne hatho ki lakeer maan kar fir agle subah ka intezar karte hain. Bhala ise Majdoori kahe ya Majboori.